भजन - अब हम निज घर डेरा दीना।
दीर्घ से दीर्घ लघु से अति लघु,
है झीने से झीना।।टेर।।
वाणी वेद अर्थ कर हारे,
इनसे बहुत कदीना।
संख्या परे असंख अगोचर,
अनुभव जिन लख लीना।।1।।
अब हम निज घर डेरा दीना...
शब्द स्पर्श रुप रसादि,
पंच भूत गुण तीना।
नव से अलग लोक से आगे,
पाया अजब नगीना।।2।।
अब हम निज घर डेरा दीना...
देव और दानव मानव मुक्ति,
हरि हरे खास हरि ना।
नाम रुप मिथ्या सब कल्पित,
यह सब काल करीना।।3।।
अब हम निज घर डेरा दीना...
स्व प्रकाश अटल पद पूर्ण,
वहाँ पर सूर्य शशि ना।
‘रामवक्ष’ अवगत गत न्यारी,
क्या कहुँ थक गये सीना।।4।।
अब हम निज घर डेरा दीना...