दोहा - दान यज्ञ अध्ययन तप,
इन्द्रिय दमन सत् धर्म।
सरलपना मन रखे,
लगे न जगका कर्म।।
लगे न जगका कर्म,
स्वर्ग जाने का गेला।
इन आठों के बीच,
गुरु मुख हैं सो गेला।।
जीव ईश परमात्मा,
आप रूप भगवान।
‘रामवक्ष’ सब से बड़ा,
अभय ज्ञान का दान।।
भजन - इस काया नगर के कोट में,
एक अजब रंगीला नर है।।टेर।।
देखो कीमत कारीगर की,
लीला अजब अनोखी हरि की।
कैसे देह बनादी नर की,
रखा गर्भ की ओट में।
कुरदरत का खेल अधर है।।1।।
इस काया नगर के कोट में...
किस विधि आंत दांत और श्वांसा,
किस विधि श्रवण नेत्र नासा।
जीव किसी विधि किया जो बासा,
रज पानी की ओट में।
चेतन की झलक जबर है।।2।।
इस काया नगर के कोट में...
मन से कर्म कर्म से काया,
काया करसब खेल दिखाया।
अपना भेद आपने पाया,
अग्नि लागी खोट में।
अपने में अपना घर है।।3।।
इस काया नगर के कोट में...
जीव ईश की टूटी सन्धी,
आ ही थी मोटी दुर्गन्धी।
‘रामवक्ष’ पूर्ण निष्फन्दी,
अरे लखा शब्द की चोट में।
निज आत्म पद में थिर है।।4।।
इस काया नगर के कोट में...
I don’t think the title of your article matches the content lol. Just kidding, mainly because I had some doubts after reading the article.