श्लोक - ओम अक्षर ब्रह्म है,
अगमन निगम दो साख।
कर्म उपासन ज्ञान में,
गावे श्रुतियां लाख।।

गावे श्रुतियां लाख,
शास्त्र पुराण जो सारा।
वाणि अनन्त अपार,
महा कवि कथ कथ हारा।।

स्वर व्यंजन से परे,
सोहम् सोहम् सोम्।
‘रामवक्ष’ सदगुरू बिना,
कौन लखावे ओम।।

भजन - सन्त आया मिजमानी रे।
भर गये पूर्ण भाव,
चाव में चढ़ी दिवानी रे।।टेर।।

घर ल्याया शील सन्तोष,
मुक्त की दी निशानी रे।
क्या मुख करूँ बखान,
प्रेम के भीज्यो पानी रे।।1।।

सन्त आया मिजमानी रे...

सतगुरु जैसा देव,
नहीं दुनिया में दानी रे।
दातारों का दातार,
दूर सब करी गिलानी रे।।2।।

सन्त आया मिजमानी रे...

जो थी मेरी चाल,
आप से क्या थी छानी रे।
मानुष दिया बनाय,
हटा दी चारों खानी रे।।3।।

सन्त आया मिजमानी रे...

कर पारख परखाय,
सहल दीन्हीं सहलानी रे।
‘रामवक्ष’ प्रकाश भया,
उर अनुभव वाणी रे।।4।।

सन्त आया मिजमानी रे...

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