दोहा - दान यज्ञ अध्ययन तप,
इन्द्रिय दमन सत् धर्म।
सरलपना मन रखे,
लगे न जग का कर्म।।
लगे न जग का कर्म,
स्वर्ग जाने का गेला।
इन आठों के बीच,
गुरु मुख हैं सो गेला।।
जीव ईश परमात्मा,
आप रूप भगवान।
‘रामवक्ष’ सब से बड़ा,
अभय ज्ञान का दान।।
भजन - अब मैं ज्ञानी सतगुरु पाया,
मेरा किया भ्रम सब दूर।।
टेर।।
श्रवण द्वार शब्द सत भणका,
नभ मण्डल जा लागा ठणका,
उर अन्दर बेधा मन मिण का,
फिर मुख से बक्यां जरुर।
असमानी शब्द सुणाया।।1।।
अब मैं ज्ञानी सतगुरु पाया...
सत्य शब्द मुख सेती भाख्या,
रसना बिना गुरु मुख चाख्या।
खुल गये नैन चहुँ दिशि झांक्या,
फिर भया भ्रम चकना चूर।
निज नजर निरंजन आया।।2।।
अब मैं ज्ञानी सतगुरु पाया...
बहुत दिनों का सूता जागा,
आत्म उदय तिमिर सब भागा।
अन आत्म का झगड़ा त्यागा,
फिर परस्या सत् चित् नूर।
आपा में आप समाया।।3।।
अब मैं ज्ञानी सतगुरु पाया...
अब तू सुणले गुरु गम वाणी,
मेटूं मन की खेंचा ताणी,
‘रामवक्ष’ साधु परमाणी,
वो मोक्ष भये जरूर।
कथ निर्गुण शब्द चलाया।।4।।
अब मैं ज्ञानी सतगुरु पाया...