भजन - साधो भाई कर गये हंस पियाणा।
कौन द्वार कौन सी योनि,
लीन्हा कौन ठिकाना।।टेर।।
नेत्र द्वार पक्षी की योनि,
भिन्न-भिन्न कहूं म्याना।
घ्राण द्वारा माखी मच्छरादि,
प्रेत भूत व्है काना।।1।।
साधो भाई कर गये हंस पियाणा...
मुख से मनुष्य जन्म को पावे,
सुन सांचा प्रमाण।
मूत्र द्वार जलादिक योनि,
कृमि व्है पाखाना।।2।।
साधो भाई कर गये हंस पियाणा...
राजा होय सर्व सुख भोगे,
चंद्र सन्न स्थापना।
परम धाम पद बिरला पहुँचे,
सो है देश दीवाना।।3।।
साधो भाई कर गये हंस पियाणा...
चार खान चौरासी जाति,
लग रहा आना-जाना।
‘रामवख्श’ निज अलख अयोनि,
अक्षर लगे न काना।।4।।
साधो भाई कर गये हंस पियाणा...