भजन - मन रे ज्ञानी सतगुरु करणा,
भिन्न भिन्न करके अर्थ बतावे,
निज दरसावे निरणा।।टेर।।
मन रे ज्ञानी सतगुरु करणा...
विद्यावान ध्यान उर पूरणा,
जिनका लेणा शरणा।
ब्रह्मनिष्ठ अनुभव विधि सूंपे,
तेरु सिखावे तिरणा।।1।।
मन रे ज्ञानी सतगुरु करणा...
तन में तार अखंड धुन भरदे,
मन में ठूंसे सुमरणा।
गुरु मुख वचन सोहणा लागे,
जैसे झरे निझरणा।।2।।
मन रे ज्ञानी सतगुरु करणा...
बड़ा गम्भीर अकल का ऊँडा,
लम्बी चैड़ी जरणा।
तुरंत करे नर से नारायण,
फिर नहीं होवे मरणा।।3।।
मन रे ज्ञानी सतगुरु करणा...
सच्च्दिानंद चंद से निर्मल,
हुई महर क्या डरणा।
‘रामवक्ष’ सतगुरु का लक्षण,
संत शास्त्र वरणा।।4।।
मन रे ज्ञानी सतगुरु करणा...