दोहा - पद पद में सम्पत्ति मिले,
होत विपति का नाश।
जिन सज्जनों के चित्त में,
परोपकार प्रकाश।।
परोपकार प्रकाश,
तिरे कुल अपना त्यारे।
एक बिंदी एक,
नरक से स्वर्ग सिधारे।।
मनुष जन्म की सफर,
फेर आसी कद कद में।
‘रामवक्ष’ हरि भक्त,
भरी कीर्ति पद पद में।।
भजन - कर सोझी खोजी से मिलिया,
मौजी मन ठहराया।।टेर।।
सूता जीव अज्ञान दिशा में,
सतगुरु आन जगाया।
कागा कर्म दुरमति तज त्यागी,
विसरत हंस मिलाया।।1।।
सतगुरु भेद बताया हमने...
कौन जाति हंस की आदू,
कौन नाम बतलाया।
कौन देश से हंसा आया,
कहां पर जाय समाया।।2।।
सतगुरु भेद बताया हमने...
आत्म जाति हंस की आदू,
प्राण नाम बतलाया।
गगन मंडल हंसों का बासा,
सुख सागर में न्हाया।।3।।
सतगुरु भेद बताया हमने...
सुख सागर की सोहं लहरी,
निर्मल जल में न्हाया।
औघट घाट बाट बिना बैठा,
अलख ध्यान बिना ध्याया।।5।।
सतगुरु भेद बताया हमने...
भजनानंद मिले गुरु पूरा,
समर्थ सांच लखाया।
‘रामवक्ष’ मौजी की सोझी,
खोज मुदा घर आया।।6।।
सतगुरु भेद बताया हमने...
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