दोहा - नर से घणा गुणवान,
धरण पर देखो तरवर।
करे पराया मान,
अचल रहे जैसे गिरवर।।

फल देवे छाया करे,
लकड़ी आवे काम।
मानुष तेरी देह की,
मिले न एक छिदाम।।

मिले कण एक छिदाम,
निकाले जल्दी घर से।
‘रामवक्ष’ कथ कहे,
काज क्या मूरख नर से।।

भजन - हंसा छोड़ चल्यो अधराती।
अन्त समय की दौरी पुल में,
कोई न चले संगाती।।टेर।।

उठे हिलोर नैन जल धारा,
डरपत फाटे छाती।
मैं जाणी हंसो संग रहसी,
काया घणी बिलखाती।।1।।

हंसा छोड़ चल्यो अधराती...

काया सुनो हमारी कहनी,
सैनी कर समझाती।
देह बिछोह मोह सब छोड़ो,
झूंठी जगत बराती।।2।।

हंसा छोड़ चल्यो अधराती...

जगसारी खारी फिर लागी,
हंसकी समझ सराती।
हंस परलोक सफर में चढ़गो,
संग न पहुँचे नाती।।3।।

हंसा छोड़ चल्यो अधराती...

करलो भजन सज्जन बन सुधरो,
धर्म सजाय जगाती।
‘रामवक्ष’ बिछुरत की पुल में,
जीव को झुरे गिनाती।।4।।

करलो भजन सज्जन बन सुधरो,
धर्म सजाय जगाती।
‘रामवक्ष’ बिछुरत की पुल में,
जीव को झुरे गिनाती।।4।।

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