श्लोक - काया में करतार है,
सदगुरु बिना अंधेर।
सात द्वीप नौ खंड में,
देख लिया चौफेर।।

देख लिया चौफेर,
ईश्वर दर्शे नहीं तन में।
सतगुरु मिल्या दलाल,
प्रकट दिखलाया मन में।।

घट घट व्यापक ब्रह्म,
चेतन छाया में।
‘रामवक्ष’ लख राम,
देख निज काया में।।

भजन - गाते हो किस का गीत,
है पूर्ण ब्रह्म अकर्त्ता।।टेर।।

पूर्ण ब्रह्म अवतार लिया नहीं,
हाथ पांव और देह भी है नहीं।
उत्पत्ति पालन करता वो नहीं,
यह दन्त कथा की रीत।
वो नहीं जन्में नहीं मरता।।1।।

गाते हो किस का गीत,
है पूर्ण ब्रह्म अकर्त्ता...

माया खेल दिखावे सारा,
अजब नमूना न्यारा न्यारा।
स्वर्ग नरक बैकुण्ठ द्वारा,
त्रिगुण सके न जीत।
बतलाओ किस में थिरता।।2।।

गाते हो किस का गीत,
है पूर्ण ब्रह्म अकर्त्ता...

कोई कहै मूल कहै डाली,
कोई कहै यह विधि निराली।
कोई कहै कहाँ पे नहीं खाली,
गई आयुर्बल बीत।
जो जन्म लिया सो मरता।।3।।

गाते हो किस का गीत,
है पूर्ण ब्रह्म अकर्त्ता...

पोल में ढोल सर्व बाजा,
अपना अपना कर अन्दाजा।
‘रामवक्ष’ प्रसन्न भये ताजा,
निर्गुण, अखे अतीत।
वहाँ काल बिचारा डरता।।4।।

गाते हो किस का गीत,
है पूर्ण ब्रह्म अकर्त्ता...

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