भारत में फैली, दारु की बदबोय भजन लिरिक्स

दोहा - दारु पीना है बुरा,
महापाप का मूल।
दुःख छूटे अक्ल घटे,
रहे ढीला स्थूल।।

जाल सब उल्टा गूंथे,
मार्ग में पड़ जाय।
मुख में कुकरां मूते,
यादव कुल का नाश।
बड़ा था मारु,
‘रामवक्ष’ गुणी कहे,
त्यागो बिल्कुल दारु।।

भजन - भारत में फैली,
दारु की बदबोय।।टेर।।

नशाबाज नादान अनाड़ी,
खावे पैजारों की मार।
पिटे खूब करे सिर गंजा,
मारे जोर शोर से बार।
उड़े तड़ातड़ पड़े पड़ापड़,
भागे सड़ासड़ बीच बजार।
नकटों की मण्डली में सबको,
इसी किस्म की है मनुहार।
लुच्चा लफंगा लौफर काफर,
भूंडा कहे सर्व संसार।
मांस खाय फिर मदिरा पीवे,
मोटा दुर्गुण दोय।।1।।

भारत में फैली,
दारु की बदबोय...

मदवा बन त्रिया को पीटे,
मात पिता को देवे गाल।
करजदार नित करे तकाजा,
यार मसखरा खागा ये माल।
भैन भानजी ठिगे ठिकाना,
बेटी तक करदे कंगाल।
बिना अकल का मिले ऊतिया,
बने भूतिया कर मतवाल।
भूखो मरे तड़ाछा खावे,
मुश्किल हो गई रोटी दाल।
हाय हाय करते दिन बीते,
रैन बिताई रोय।।2।।

भारत में फैली,
दारु की बदबोय...

नस नस में कमजोरी व्यापी,
दूखे बदन सुकड़ गये हाड़।
तो भी प्यारी लगे कलाली,
कर कर हेत लड़ावे लाड़।
प्यालों का क्या थाग लगे यहाँ,
बोतल टेक्यां भीजे डाढ।
उलटी कर मुख भिष्टा निगले,
सबके बीच करे ओछाड़।
देह निरोगी रखना है तो,
ले लो नेम पकड़लो ठाड़।
सतगुरु दयाल दीन का दाता,
नित समझावे तोय।।3।।

भारत में फैली,
दारु की बदबोय...

ऋषि महाऋषि वेद शास्त्र,
कहें बहुत विधि नीति न्याय।
यादव नाश भये मदिरा पी,
पहले कृष्ण दिया चेताय।
पापी जीव मानले कहनी,
रहनी रख सबको समझाय।
दूध दही घी रबड़ी बूरा,
पी ठंडाई लस्सी बनाय।
भाँति भाँति के शरबत पीवो,
काया तर तृप्त हो जाय।
‘रामवक्ष’ मादकता तजदे,
मन मैलापन धोय।।4।।

भारत में फैली,
दारु की बदबोय...

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