दोहा - ओम अक्षर ब्रह्म है,
अगमन निगम दो साख।
कर्म उपासन ज्ञान में,
गावे श्रुतियां लाख।।
गावे श्रुतियां लाख,
शास्त्र पुराण जो सारा।
वाणि अनन्त अपार,
महा कवि कथ कथ हारा।।
स्वर व्यंजन से परे,
सोहम् सोहम् सोम्।
‘रामवक्ष’ सदगुरु बिना,
कौन लखावे ओम।।1।।
राम नाम की तार लगी,
मत तोड़ रे।
झूंठी विद्या छोड़,
सांच ने जोड़ रे।।
सत्य साहेब का नाम,
झूंठी आ खोड़ रे।
अरे हां ‘ईसर’ बिना भजिया,
पावे ना ठोड़ रे।।1।।
भजन - करले राम भजन से हेत।
मूरख अब तो मन में चेत।।टेर।।
बालापन में खेलत खावत,
भर यौवन ज्यों प्रेत।
बूढेपन में जर जर काया,
बाल भये सब श्वेत।।1।।
करले राम भजन से हेत...
लख चौरासी छूटी चाहै,
करले हरि से हेत।
बार बार तुझको समझाऊँ,
होवे क्यों मूढ अचेत।।2।।
करले राम भजन से हेत...
दिल में दया धर्म सो करसी,
भूखों को अन्न देत।
सोई प्राणी पार पहुँचे,
माता पिता समेत।।3।।
करले राम भजन से हेत...
आया है सो जायगा,
क्या राजा क्या रेत।
‘रामवक्ष’ कण लाटा चाहो,
खूब सुधारो खेत।।4।।
करले राम भजन से हेत...