भजन - मन रे गुरु देव ने ध्याले।
जन्म मरण का काटे मोरचा,
प्रिति पूर्वली पाले।।टेर।।
सत गुरुदेव वैद्य बन आया,
कर की नबज दिखाले।
देखे नबज समझ से दाता,
कर्म नाटिको चाले।।1।।
मन रे गुरु देव ने ध्याले...
कर्म कटन की दवा बताऊं,
गुरु गम औषध खाले।
शब्द जड़ी पै ज्ञान मसालो,
चेतन होय चढाले।।2।।
मन रे गुरु देव ने ध्याले...
जत सत मत दृढ गाढो होजा,
देख जगत मत हाले।
चित् मन बुद्धि अन्तस सुध करके,
त्रिगुण त्राप बुझाले।।3।।
मन रे गुरु देव ने ध्याले...
होजा अरोग रोग नहीं व्यापे,
अमर नगर घर घाले।
‘रामवक्ष’ प्रीतम की नगरी,
गुरु मुख ज्ञानी चाले।।4।।
मन रे गुरु देव ने ध्याले...