श्लोक - दुनियाँ में सब मिलत है,
कर्मों के अनुसार।
राई घटे न तिल बढ़े,
यह हैं खास विचार।।
यह हैं खास विचार,
करे फल जैसा पावे।
मूरख मूढ़ अजान,
देख मन को ललचावे।।
भरे अटूट भण्डार,
कमी है क्या गुनियाँ में।
‘रामवक्ष’ कर मौज,
भोज ज्यूँ इस दुनियाँ में।।
भजन - जगत है स्वपने की सी बात,
संघ में कोई न जाने का॥टेर॥
अरे जोरावर योद्धा मरगा,
माया जोड़ जमी में धरगा।
वो सब अपनी अपनी करगा,
देख सब खेल जमाने का॥1॥
जगत है स्वपने की सी बात...
किस किस की कहूँ फजीती रे,
सब ही में खोटी बीती।
कई जन रखी पवित्र नीति,
जो नर असल घराने का॥2॥
जगत है स्वपने की सी बात...
योद्धा हनुमान से भारी,
वो रावण की लंका जारी।
राम पे रूस गई महतारी,
कर्म था दुःख भोगाने का॥3॥
जगत है स्वपने की सी बात...
दुःख सुख कर्म लिखेड़ा पावे,
संग में पाप पुण्य दो जावे।
हरिगुण ‘रामवक्ष’ नित गावे,
वक्त यह फिर नहीं पाने का॥4॥
जगत है स्वपने की सी बात...