भजन - काया म्हारी प्रीत करी पछताया,
थोड़े दिन के जीने खातिर,
केई पाप कमाया॥टेर॥
अन्न धन माल चौगुणा,
लश्कर नारि पुत्र घर माया।
देख देख इस जग की बातें,
जीव घणा भ्रमाया॥1॥
काया म्हारी प्रीत करी पछताया...
लालण पालण न्हाण धोण में,
सारा समय बिताया।
खान पीन और पान भोग में,
स्मरण याद नहीं आया॥2॥
काया म्हारी प्रीत करी पछताया...
काया जीव करी मिल रामत,
पल पल चित्त ललचाया।
हाड़, मांस, मूत्रका, कृमि,
छैल भँवर कहलाया॥3॥
काया म्हारी प्रीत करी पछताया...
आय अचानक काया गढ़ में,
यम ने शोर मचाया।
‘रामवक्ष’ जोरावर योद्धा,
हाथ पसार सिधाया॥4॥
काया म्हारी प्रीत करी पछताया...