श्लोक - जननी जन के क्या किया,
भार सहा नव मास।।
भार सहा नव मास,
सुघड़ नर सोना जैसा।
घिस पिट कट तप रहा,
फेर वैसा का वैसा।।
‘रामवक्ष’ इस लोक में,
रहणी मोटा ज्ञान।
देवों में सब से सिरे,
करें ज्ञान का दान।।
भजन - सुनो तुम कान लगा के,
भारत की संतान।।टेर।।
विद्या पढ़ो अविद्या त्यागो,
मूर्ख को गुरु बनावो क्यों।
अपने से कर्म हीन फिर,
आगे शीश झुकावो क्यों।
चिकना भोजन गर्म रसोई,
उनके भेंट चढ़ावो क्यों।
दान दक्षिणा पान फूल फल,
उनके भेंट चढ़ावो क्यों।
मात पिता को लूखो टुकड़ो,
घर से बाहर भगावो क्यों।
अरे नर नारी तुम चेत करो,
अब वृथा समय बितावो क्यों।
धर्म कर्म और ज्ञान हीन को,
बिल्कुल मत दो मान।।1।।
सुनो तुम कान लगा के,
भारत की संतान...
धूर्त पाखंडी महा मूर्ख,
जिसको समझो यम का दूत।
सन्निपात ज्वरादि मानसिक,
रोग न लखे बके कहै भूल।
आँख के अंधे गांठ के पूरे,
कह महाराज जिला दो पूत।
पापी कह ताबीज बना दूँ,
लादो जल्दी लीला सूत।
मद्य मांसादि भोग चढ़ा दो,
पूरा काम बने मजबूत।
देवी भैरव पीर मसाणी,
छाया भी कहाँ गये सब ऊत।
कहो भला अब कौन करेगा,
कुछ तो सोचो ज्ञान।।2।।
सुनो तुम कान लगा के,
भारत की संतान...
ज्योतिषी जी का नम्बर आया,
वो भी ढोंग रचाते हैं।
नौ ग्रहों की क्रूर दृष्टि,
भोलों को भ्रमाते हैं।
सूरज चंद्र लगा शनिचर,
यूं बेटा बतालाते हैं।
शांति पाठ करावो पूजा,
हम चेड़ा दूर भगाते हैं।
जन्म पत्र का नाम निकम्मा,
शोक पत्र लिखलाते हैं।
अंक बीज रेखा गणित यह,
असली भेद छुपाते हैं।
ब्राह्मण निमत्त जिमावो इतना,
लावो दक्षिणा दान।।3।।
सुनो तुम कान लगा के,
भारत की संतान...
मात पिता की शिक्षा मानो,
विद्या पढ़ो बनो विद्वान।
गुणियों से फिर मिले परीक्षा,
सांच झूंठ की करो पिछान।
सत्य संकल्प मन में भरदा,
तन से वीर बनो बलवान।
परमेश्वर का नेम अटल है,
भूलो कभी न अपना ध्यान।
धन को शुभ मार्ग में बरतो,
सुपात्र को देवो दान।
कीर्ति करके चलो जगत में,
महिमा गावे सारी जहान।
‘रामवक्ष’ तूं हरि गुण गा रे,
जहां तक तन में प्राण।।4।।
सुनो तुम कान लगा के,
भारत की संतान...