ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र, यह चार वर्ण भजन लिरिक्स

भजन - ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र यह,
चार वर्ण हिन्दवानी में।
विद्या हीण विहीण कर्म से,
सारे मिल गये पानी में।।

ब्राह्मण होकर अपनी खोकर,
माँगे भीख जवानी में।
फिर भी छुआछुत बतावे,
लगे गये सब की हानि में।।1।।

महाराणा प्रताप सरी से,
वीर पुरुष अगवानी में।
वो क्षत्रिय जन आज कहाँ है,
देखो इस राजधानी में।।2।।

वैश्य करे नित आटा साटा,
घाटा कौड़ी कानी में।
धर्म से हीण द्रव्य कहाँ पावे,
जाव माल दिवानी में।।3।।

शूद्र सेवा तज के फँस गये,
भैंरु भूत भवानी में।
ऐसा गिरे फिरे नहीं पीछे,
पड़े नरक की खानी में।।4।।

गुण और कर्म स्वभाव पवित्र,
ब्रह्मज्ञान जिस ज्ञानी में।
वर्ण आश्रम तोड़ जोड़ दिये,
निश्चय पद आसानी में।।5।।

विद्यावान सर्व में शामिल,
रह्या न खींचा तानी में।
वर्तमान प्रत्यक्ष बताया,
‘रामवक्ष’ इस वाणी में।।6।।

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