श्लोक - गीता पढ़ ले भागवत पढ़ ले,
पढ़ ले चारों वेद।
सतगुरु का उपदेश बिना,
मिटे न मन की खेद।।
मिटे न मन की खेद,
वेद चिकित्सा जाणे।
पूरा करें निदान,
दुवापा कर दे ठिकाणे।।
मन मुखी कर गया ज्ञान,
भोत ही रह गया रीता।
‘रामवक्ष’ गुणी कहे,
गुरु संग पढ़ ल्यो गीता।।
भजन - हरिजन लागे प्यारा रे,
मैं सतगुरु को दास,
संत सिर मौर हमारा रे।।टेर।।
भवसागर सागर में डूबत,
कर दिया पारा रे।
शब्द सुनाय संदेह मिटा,
सब कष्ट निवारा रे।।1।।
हरिजन लागे प्यारा रे...
सत् गुरु बिना जीव का,
कुण करता निस्तारा रे।
भूल भ्रम के बीच घणा दिन,
भटकत हारा रे।।2।।
हरिजन लागे प्यारा रे...
जाग्रत हो नेत्र जोया,
निज दीदारा रे।
समर्थ श्याम सर्व में सूझा,
सबसे न्यारा रे।।3।।
हरिजन लागे प्यारा रे...
आधी व्याधि उपाधी नाहीं,
शब्द विचारा रे।
‘रामवक्ष’ शब्दों से आगे,
सर्जनहारा रे।।4।।
हरिजन लागे प्यारा रे...