दोहा - दुनियाँ में सब मिलत है,
कर्मों के अनुसार।
राई घटे न तिल बढ़े,
यह है खास विचार।।

यह हैं खास विचार,
करे जैसा फल पावे।
मूरख मूढ़ अजान,
देख मन को ललचावे।।

भरे अटूट भण्डार,
कमी है क्या दुनियाँ में।
‘रामवक्ष’ कर मौज,
भोज ज्यूँ इस दुनियाँ में।।

भजन - बेजो म्हारो, रणुकार में चाले।
हेत लगाय बुने नित बेजो,
रग रग डोरी हाले।।टेर।।

जत सत से दोनों खूंटा रोप दे,
नीति तुर ठहराले।
कुम्भक कलयां लगी युक्ति से,
सुरता झालण घाले।।1।।

बेजो म्हारो, रणुकार में चाले...

चौरासी का ताणां मांही,
यह मन तागा डाले।
शील संतोष खूब जल घालो,
गुरु गम पाण चढाले।।2।।

बेजो म्हारो, रणुकार में चाले...

गगन मंडल में आगल खूंटो,
सोहं रास सराले।
अष्ट कमल की कर चौथायाँ,
षट् चक्कर सुलटाले।।3।।

बेजो म्हारो, रणुकार में चाले...

त्रिकुटी पर करके बेसकी,
हंसो थिर बैठाले।
प्रेम पावड़ी दाब युक्ति को,
जूनो योग जगाले।।4।।

बेजो म्हारो, रणुकार में चाले...

हाथो ज्ञान राछ युक्ति को,
स्वांसा नाल घुमाले।
सत् शब्दों का ठरका खाय कर,
जन्म सूत सुलझाले।।5।।

बेजो म्हारो, रणुकार में चाले...

छः सौ इक्कीस हजार तागा है,
रैन दिवस यूं चाले।
ज्ञान ध्यान से जोड़ा बन कर,
मुक्ति रुपिया पाले।।6।।

बेजो म्हारो, रणुकार में चाले...

भजनानंद मिला बड़भागी,
कलह कल्पना टाले।
‘रामवक्ष’ रिखिया को लड़को,
घट में बेजो घाले।।7।।

बेजो म्हारो, रणुकार में चाले...

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